Aditya L1 सूर्य की खोज कैसे करता है और सूर्य का रहस्य क्या है?

महज कुछ सालों में इसरो ने चांद से लेकर मंगल तक का सफर पूरा किया और पूरी दुनिया में अपना लोहा बनवाया और जब इसरो ने चंद्रयान लैंडर को चांद के साउथ पोल पर उतरा तो भारत पहला देश बना जिसने ये कारनामा किया था और जब भारत के लोग इसकी खुशी में झूम रही थी तो वहीं पर इसरो फिर से सूरज की तरफ निकल चुका था और अपना अगला मिशन Aditya L1 मिशन लॉन्च किया जिसका काम सूरज का चक्कर लगाना है ताकि वह सूरज से निकलने वाले मैग्नेटिक फील्ड आयोनिक पार्टिकल सोलर फ्लेयर्स और कोरोना इंजेक्शन पर रिसर्च कर सके और ऐसे ही भारत दुनिया का तीसरा देश बन जाएगा जो सूरज के ऑर्बिट में अपना स्पेसक्राफ्ट भेजेगा तो अगर हम इस मिशन की बात करें तो अभी तक सिर्फ दो ही देश ऐसे हैं जिसे अपना स्पेसक्राफ्ट सूरज के ऑर्बिट में भेजा है।

 

 

जिसमें अमेरिका और यूरोप ही शामिल है और Aditya L1 मिशन के बाद भारत तीसरा देश बन जाएगा जिसका स्पेसक्राफ्ट सूरज का चक्कर लगाएगा और अगर इसके नाम की हम बात करें तो आदित्य का मतलब सूरज और जिस जगह पर इसे भेजा जाएगा उसे जगह का नाम L1 है जिस Lagrange Point भी बोला जाता है जो कि सूरज और धरती के बीच की ऐसी जगह है जहां पर ग्रेविटी एकदम न्यूट्रल होती है और ऐसी जगह पर स्पेसक्राफ्ट बहुत ही आराम से टिका हुआ होता है यानी कि उस पॉइंट पर स्पेसक्राफ्ट ना तो सूरज की तरफ जा पाएगा और ना ही धरती की तरफ आप आएगा और बस उसी जगह पर टिका हुआ रहेगा और अगर Lagrange Point की बात करें तो ऐसे 5 पॉइंट सूरज के चारों तरफ है जहां पर ग्रेविटी न्यूट्रल होती है और वह 5 पॉइंट साल 1717 में इटालियन फ्रेंच मैथमेटिशियन जोसेफ को इस लिगर (Italian – French Mathematician Joseph – Louis Lagrange) इंच के द्वारा खोजा गया था और आपको जानकर हैरानी होगी कि जेम्स वेब टेलीस्कोप (James Webb Telescope) को दूसरे लेवरेज पॉइंट पर रखा गया है जिसे पॉइंट L2 कहा जाता है ।

 

जो की धरती के पीछे है जहां पर सूरज की लाइट कभी भी नहीं पहुंच पाती और इस वजह से जेम्स वेब टेलीस्कोप आराम से यूनिवर्स की खोज कर पता है अब अगर पॉइंट L1 की बात करें तो यह धरती से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है और यह दूरी सूरज से धरती की दूरी का 1% है जहां पर स्पेसक्राफ्ट स्टेबल किया जाएगा अब सबसे बड़ा सवाल यह आता है कि आखिर आदित्य स्पेसक्राफ्ट को लॉन्च क्यों किया गया और इसका हमें क्या फायदा मिलेगा तो इसका जवाब यह है कि हम किताबों में कितना भी सूरज को समझ ले लेकिन आज तक हम सूरज को पास से समझ नहीं पाए हैं और सूरज पर मौजूद कोरोना और उसके सोलर स्टॉर्म को भी समझ नहीं पाए हैं ।

 

क्योंकि वैज्ञानिक आज तक इस बात को समझ नहीं पाई कि आखिर कैसे सूरज से निकलने वाले प्लेयर्स से कोरोना कहते हैं उसे सूरज की सतह से सबसे ऊपर होने के बाद भी उसका टेंपरेचर लगभग 1 मिलियन डिग्री सेल्सियस है और वहीं पर सूरज का सरफेस जिसे हम फोटोस्फीयर कहते हैं उसका टेंपरेचर 5000 डिग्री सेल्सियस के आसपास है जबकि सूरज के कोर से दूरी बढ़ने पर टेंपरेचर कम होना चाहिए पर कोरोना की दूरी सूरज के कोर से सबसे ज्यादा है इसके बाद भी इसका टेंपरेचर इतना ज्यादा है और यही वह रहस्य है यही वह सीक्रेट है जिसने वैज्ञानिकों को कई सालों से परेशान करके रखा है और दूसरायह कि हमारी धरती के ऑर्बिट में कुल 8000 सेटेलाइट छोड़े जा चुके हैं जिसमें 4000 एक्टिव सेटेलाइट है जिसके बारे में हमें कोई भी जानकारी ना हो तो वह स्ट्रांग हमारे सेटेलाइट के सर्किट को तहस-नहस कर देंगे और महज कुछ ही मिनट के अंदर ही धरती का ट्रिलियन डॉलर पैसा डूब जाएगा और उसे पैदा होने वाले अंतरिक्ष के कचरा भी इंसानों के लिए खतरा बनेंगे ।

 

इसलिए अगर हम इन्हें पहले से जान पाए तो काफी हद तक हम धरती का पैसा और संसाधन बचा पाएंगे और इसीलिए आदित्य L1 मिशन को लांच किया जा रहा है कि जब 1859 यानी 1859 में सूरज के कोरोना इंजेक्शन की वजह से धरती पर अब तक का सबसे बड़ा स्टॉर्म सबसे बड़ा तूफान आया जिसने उसे टाइम मौजूद टेलीग्राफ स्टेशन को बर्बाद करके रख दिया था अब जरा आप सोच कर देखिए कि आज के टाइम में हर घर के अंदर लैपटॉप फोन भरे पड़े हैं तो अगर यह तूफान बिन बुलाए मेहमान की तरह धरती पर आते हैं तो न जाने कितने ट्रिलियन डॉलर का नुकसान करेंगे यह तो बात हो गई कि आखिर किस वजह से Aditya L1 को लांच किया गया है।

 

तो उसका बजट सिर्फ 49 मिलियन डॉलर है यानी कि लगभग 400 करोड़ के आसपास और अगर नस के पार्कर सोलर की बात करें तो उसका बजट लगभग 12000 करोड रुपए के आसपास है जो कि आदित्य के बजट से लगभग 30 गुना ज्यादा है और आदित्य स्पेसक्राफ्ट में साथ पेलोड लगे हैं यानी कि साथ ऐसे मशीन है जो कि सूरज के लिए अलग-अलग चीजों पर रिसर्च करेंगी जिसमें सबसे पहले पेलोड का नाम है (VELG Visible Emission Line Coronagraph) वी ई एल एस वेल्स जिसे विजिबल एमिशन लाइन कोरोना ग्राफ भी कहते हैं जिसका काम है सूरज के कोरोना पर रिसर्च करना ताकि उसमें पैदा होने वाले टेंपरेचर को समझा जा सके और दूसरा पेलोड का नाम है (SUIT Solar Ultraviolet Imaging Telescope) एस यू आई टी सूट यानी कि सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप जिसका काम सूरज में मौजूद फोटोस्फीयर का अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन के रूप में इमेज लेना हैक्योंकि फोटोस्फीयर से सोलर फ्लेयर्स जन्म लेते हैं और फोटो स्पेयर को सूरज का सरफेस बोला जाता है ।

 

जो कि सूरज के सफेद से 400 किलोमीटर तक फैली होती है और उसके बाद यह पेलोड सूरज के क्रोमोस्फीयर का भी इमेज लगा जो कि सूरज की सतह से 2000 किलोमीटर तक फैला हुआ है और तीसरे पेलोड का नाम है सॉलिड यानी कि सोलर को एनर्जी स्पेक्ट्रोमीटर जिसका काम सूरज से निकलने वाली हल्की एक्सप्रेस लाइट को समझना है और सूरज क्यों एरिया को मैप करना है जिस स्पीड में बहुत कम मात्रा में एक्सप्रेस निकालते हो और चौथे पेलोड का नाम है एच ए एल 10s हाई एनर्जी L1 आर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर जिसका काम सॉलिड से एकदम उल्टा है क्योंकि जहां पर काम करेगा वहीं पर यह पेलोड हाई एनर्जी वाले एक्सप्रेस पर रिसर्च करेगा और उन एरिया को मैप करेगा तो इस तरीके से सूरज पर मौजूद अलग-अलग एरिया से निकलने वाले एक्सप्रेस को पहले ही समझा जा सकेगा और धरती के वातावरण और सेटेलाइट पर जो चीज सबसेउसे सूरज से निकलने वाले आयनिक पार्टिकल्स होते हैं जिसमें इलेक्ट्रॉन और प्रोटोन दोनों पार्टिकल्स होते हैं ।

 

जो की काफी स्पीड से धरती की तरफ आते हैं और जिसमें प्रोटॉन पार्टिकल काफी हैवी पार्टिकल्स होते हैं जो की सेटेलाइट को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं और यह सूरज के शौर्य तूफान से पैदा होते हैं क्योंकि सूरज में लगातार प्लाज्मा के लहरें पैदा होती रहती है जो कि कभी-कभी अपने मैग्नेटिक फील्ड से बाहर निकल आती है और धरती तक पहुंच जाती है जिसकी वजह से सेटेलाइट का बहुत ज्यादा नुकसान होता है और इसी की जानकारी इकट्ठा करने के लिए उन्होंने एस्पेक्ट्स यानी एस्पेक्टयानी आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट पेलोड को लगाया है और प्रोटोन पार्टिकल के साथ-साथ सोलर विंड में इलेक्ट्रॉन पार्टिकल्स भी धरती की तरफ आते हैं जिसकी वजह से सेटेलाइट का कम्युनिकेशन सिस्टम भी खराब हो जाता है तो अगर हम उनका डायरेक्शन समझ ले तो हम काफी हद तक सोलर विंड को प्रिडिक्ट कर पाएंगे इसके लिए इसरो ने पी ए पी ए पापा नाम का पेलोड लगाया है जिसका पूरा नाम प्लाज्मा एनालिसिस पैकेज पर आदित्य है और वहीं अगर हम आखिरी पेलोड की बात करें तो उसका नाम एडवांस्ड ट्री एक्सियल हाई रेजोल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर है ।

 

जिसका काम सूरज के मैग्नेटिक फील्ड की जानकारी इकट्ठा करना है जिसके लिए इस पेलोड को Aditya L1 स्पेसक्राफ्ट की तीनों दिशाओं में लगाया गया है ताकि सूरत से आने वाली मैग्नेटिक फील्ड की एनर्जी और स्पीड के बारे में अनुमान लगा सके क्योंकि जब मैग्नेटिक वेव धरती की तरफ आती है तब इसकी वजह से रेडियो ब्लैकआउट हो जाता है क्योंकि मैग्नेटिक फील्ड की वजह से ही रेडियो का कम्युनिकेशन डिस्टर्ब होता है अब अगर इसके लॉन्च की बात करें तो इसको लॉन्च करने के लिए पीएसएलवी एक्सललॉन्च सिस्टम का उसे किया गया और इसके बाद Aditya L1 को धरती के लोअर ऑर्बिट में छोड़ दिया जाएगा और उसके बाद का चक्कर लगाते हुए थ्रस्टर का उसे करता रहेगा और धीरे-धीरे अपने ऑर्बिट को बढ़ता रहेगा और एक टाइम के बाद उसे करके धरती के ऑर्बिट को छोड़ते हुए सूरज की तरफ निकल जाएगा और इस पेज को क्रूस्पेस कहा जाता है जैसे पूरा होने में 127 दिन लगेंगे और इसके बाद वह सूरज के हेलो ऑर्बिट में चक्कर लगाते हुए स्पेसक्राफ्ट अपने लिक्विड इमोजी मोटर फायर करेगा ताकि वह L1 पॉइंट में फिक्स हो पाए और यह कारनामा करने के बाद भारत दुनिया का तीसरा देश होगा।

 

जिसे सूरज के ऑर्बिट में अपना स्पेसक्राफ्ट भेजा होगा क्योंकि इससे पहले साल 2018 में नासा ने पार्कर सोलर प्रॉब्लम भेजा था क्योंकि सूरज के सफेद से 7 मिलियन किलोमीटर दूर है यानी कि लगभग सूरज के कोरोना के अंदर जा चुका है और सूरज का चक्कर लगा रहा है और इसी वजह से वैज्ञानिक इसे आज तक की सबसे बेटर इंजीनियरिंग मानते हैं क्योंकि सूरज के एटमॉस्फेयर में जो प्रेशर है उसे समुद्रके एटमॉस्फेरिक प्रेशर से 91 गुना ज्यादा है और इसे आज तक के सबसे तेज स्पेसक्राफ्ट का खिताब भी मिला है क्योंकि इसकी स्पीड लगभग 191 किलोमीटर प्रति सेकंड है और इसके बाद ऑर्बिटल ड्रॉप की बारी आती है ।

 

जैसे यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने साल 2020 में लॉन्च किया जो सूरज के ऑर्बिट का चक्कर लगाता है और यह सूरज से लगभग 40 मिलियन किलोमीटर दूर है और यह पहला स्पेसक्राफ्ट है जो कि सूरज की ऑर्बिट में घूम कर उसका पिक्चर लेता है क्योंकि पार्कर सोलर प्रोब सूरज के इतना पास है कि अगर उसे पर कैमरा लगा दिया जाए तो वह सूरज की हिट से कुछ ही सेकंड में पिघल जाएगा और आपको जानकर हैरानी होगी कि जापान में भी अपना सूरज के लिए भेजा था जिसका नाम हाई नोट था लेकिन इसके बाद भी जापान तीसरा देश नहीं बन पाया क्योंकि उसका स्पेसक्राफ्ट सूरज के ऑफिस में चक्कर नहीं लगता था बल्कि वह धरती के ऑर्बिट में घूमते हुए सूरज पर रिसर्च करता था और यही रीजन है कि भारत पूरी दुनिया में तीसरा देश बनेगा जिसने सूरज के ऑर्बिट में अपना स्पेसक्राफ्ट भेजा है तो यह जानकारी आपको कैसी लगी हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताइएगा आगे भी ऐसी जानकारी आपको समय-समय पर मिलती रहेगी। ध्यनवाद

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